मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश के एक किसान ने 1000 मोरों की देखभाल में 30 साल बिता दिये. किसान नारायण सिंह ने 12 साल की उम्र में मोरों की देखभाल शुरू की थी. उन्होंने बताया, “मेरी उम्र 12 साल की थी. मंदिर के बाहर एक घायल मोर पर नजर पड़ी. मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी भी है.
गांव के हर मोर की रक्षा करने का फैसला किया.
ऐसे में बिना भोजन पानी के असहाय देखकर मेरा दिल टूट गया. पिता की मदद से पशु चिकित्सक के पास मोर को ले गया. कुछ दिनों बाद हमने उसे पास के वन क्षेत्र में छोड़ दिया.” नारायण सिंह के मुताबिक उस घटना ने जिंदगी बदल दी. तब से उन्होंने अपने गांव के हर मोर की रक्षा करने का फैसला किया.
“इस उम्र में भी मैं मोरों की निष्ठा से सेवा कर रहा हूं
झाबुआ जिले के रहने वाले किसान नारायण सिंह कहते हैं कि अब 50 साल की उम्र हो गयी है. उन्होंने कहा, “इस उम्र में भी मैं मोरों की निष्ठा से सेवा कर रहा हूं. पिछले तीन दशकों में लगभग 1000 घायल मोरों की जान बचाई है.” नारायण सिंह पेटलावद क्षेत्र के करदावद गांव में रहते हैं.
पेटलावद में मोर का शिकार प्रतिबंधित है. मोर की घटती आबादी के पीछे अवैध शिकार एक प्रमुख कारण है. कुछ दशक पहले दो लोगों ने एक मोर को पकड़ने का प्रयास किया था. ग्रामीणों ने दोनों की बुरी तरह पिटाई कर दी थी.
‘मोर वाला’ का खिताब मिल चुका है
घटना के बाद से किसी ने भी मोर का पंख तोड़ने तक की हिम्मत नहीं की. नारायण को अब आसपास के इलाकों में ‘मोर वाला’ का खिताब मिल चुका है. मोरों के प्रति उनके समर्पण और प्रेम की जबरदस्त चर्चा होती है. लोग घायल या कमजोर मोर को नारायण के पास ले जाते हैं. पांच साल पहले मिले मोरनी को जंगल में छोड़ने के बजाए नारायण ने कुछ दिनों तक साथ रखा. बाद में उन्होंने परिवार का हिस्सा बनाकर मोरनी का नाम गौरी रखा. कुछ दिनों बाद गौरी मोरनी का निधन हो गया. उन्होंने कहा कि मेरी बेटी मोनिका ने 15 मोरों को बचाया है. पत्नी भी हमेशा पक्षियों के लिए कुछ दाना अलग रखती है. अब आलम ये है कि तकरीबन 10-15 मोर नारायण के घर आते हैं. उन्होंने दाना पानी के लिए बरामदे में गड्ढे खोदे हुए हैं.