भोपाल। आज आषाढ़ माह की पहली चतुर्थी तिथि है। इस चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते है। पंचांग में जो चतुर्थी कृष्ण पक्ष में होती है उसे संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। चतुर्थी तिथि गणपति भगवान को समर्पित होती है। इस दिन भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। इससे भगवान गणेश भक्त पर कृपा बरसाते हैं और उनके सभी कष्ट दूर कर देते हैं। आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी जब रविवार के दिन पड़ती है, तो इसे रविवती संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। आज रविवती संयोग बन रहा है। इस दिन गणेश पूजन के साथ-साथ सूर्यदेव की उपासना भी अति महत्वपूर्ण मानी गई है।
बन रहा है अद्भुत संयोग
मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव की उपासना करने से उन लोगों को विशेष लाभ मिलता है, जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर होते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक महीने में दो चतुर्थी पड़ती हैं। एक कृष्ण पक्ष में और शुक्ल पक्ष में। दोनों पक्षों की ये चतुर्थी तिथि भगवान गणेश जी को समर्पित होती है। पंचांग में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी तथा शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहते हैं। इस बार आषाढ़ मास की संकष्टी चतुर्थी पर अद्भुत संयोग बन रहा है। आइए जानते हैं कि इस माह की संकष्टी चतुर्थी की पूजन तिथि और समय, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और अद्भुत संयोग के बारे में…
गणेश चतुर्थी का महत्व
हिंदू संस्कृति में किसी भी कार्य की सफलता के लिए सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। गणेश के पूजन से भक्तों को सुख, समृद्धि और यश प्राप्ति होती है। वह सभी संकट से दूर करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, गणेश चतुर्थी का व्रत करने से या फिर इस दिन गणपति की पूजा-अर्चना करने से सभी बिगड़े कार्य बन जाते हैं। साथ ही भगवान गणेश संकटों को दूर करते हैं।
गणेश चतुर्थी पूजन विधि
इस दिन पूजन से पूर्व नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर पवित्र आसन पर बैठें। फिर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पूजन सामग्री पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: भगवान गणेश की पूजा करें। उन्हें दूर्वा (पूजा करने वाली घास) जरूर अर्पित करें। मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। पूजा के उपरांत सभी देवी-देवताओं का स्मरण करें। पूजा के अंत में गणेश जी की आरती करें। फिर प्रसाद का वितरण करें। अगले दिन दान-पुण्य कर व्रत का पारण करें।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थी। उनको चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उनके अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला करे। ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी। खेल में माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया।
इस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं। क्रोधित पार्वती जी ने उसे बालक को लंगड़ा बना दिया। उसने माता से माफी मांगी, लेकिन उन्होंने कहा कि श्राप अब वापस नहीं लिया जा सकता, पर एक उपाय है। गणेश चतुर्थी के दिन यहां पर कुछ कन्याएं पूजन के लिए आती हैं, उनसे व्रत और पूजा की विधि पूछना। तुम भी वैसे ही व्रत और पूजा करना। माता पार्वती के कहे अनुसार उसने वैसा ही किया। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उसके संकटों को दूर कर दिया।
संकष्टी चतुर्थी पर यह शुभ संयोग
पंचांग के मुताबिक़ आज रविवार है और आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है। चतुर्थी तिथि रविवार के दिन पड़ने के कारण रविवती संकष्टी चतुर्थी का संयोग बन रहा है। धार्मिक मान्यता है कि जिन लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर होते हैं। उन्हें रविवती संकष्टी चतुर्थी का व्रत जरूर रखना चाहिए। इससे जातक को बहुत लाभ मिलता है। माना जाता है कि इस दिन प्रातः काल स्नानादि के बाद भगवान सूर्य को प्रणाम कर जल अर्पित करना चाहिए तथा गणेश जी का विधिवत व्रत रखने और पूजन करने से सूर्य ग्रह संबंधी सभी दोष समाप्त हो जाते हैं।
संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
- कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी: 27 जून 2021, रविवार
- आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ: 27 जून 2021 शाम 03 बजकर 54 मिनट से
- आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त: 28 जून 2021 दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर
- संकष्टी के दिन चन्द्रोदय: 27 जून 2021 10 बजकर 03 मिनट पर